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17 जून, 2011

कातिल ने भी क्या मजाक .......

ज़िन्दगी तो 
बेवफा होकर 
मुझ से 
करती रही मजाक 
लेकिन दोस्तों 
मारने के 
बाद कातिल ने भी क्या 
मुझ से अजीब मजाक 
कसाई की तरह 
बेरहमी से 
गर्दन छुरी से 
धड से अलग करने के बाद 
तडपते दम निकलते 
कातिल ने 
मेरे बदन से
बढ़ी मासूमियत से कहा 
अरे 
यह क्या तुम तो 
मर रहे हो 
तुम्हारी तो 
अभी 
तुम्हारे परिवार और समाज को 
जरूरत थी .......................
.......................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह अकेला जी बेहतरीन कविता कही भावनाओ से भरी और विद्रूपताओं को बयान करती

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  2. अख्तर भाई , बेहतरीन रचना के लिए बधाई।

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  3. बहुत अच्छी दिल को छूती रचना |
    आशा

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  4. साहित्य में कम लोग हैं जिन्होंने ज़िंदगी को निकट से देख अपनी बात राखी है. सच्ची पोस्ट!
    हमज़बान की नयी पोस्ट http://hamzabaan.blogspot.com/2011/07/blog-post_09.html में आदमखोर सामंत! की कथा ज़रूर पढ़ें

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