कातिल ने भी क्या मजाक .......
ज़िन्दगी तो
बेवफा होकर
मुझ से
करती रही मजाक
लेकिन दोस्तों
मारने के
बाद कातिल ने भी क्या
मुझ से अजीब मजाक
कसाई की तरह
बेरहमी से
गर्दन छुरी से
धड से अलग करने के बाद
तडपते दम निकलते
कातिल ने
मेरे बदन से
बढ़ी मासूमियत से कहा
अरे
यह क्या तुम तो
मर रहे हो
तुम्हारी तो
अभी
तुम्हारे परिवार और समाज को
जरूरत थी .......................
.......................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
वाह अकेला जी बेहतरीन कविता कही भावनाओ से भरी और विद्रूपताओं को बयान करती
जवाब देंहटाएंअख्तर भाई , बेहतरीन रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी दिल को छूती रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
साहित्य में कम लोग हैं जिन्होंने ज़िंदगी को निकट से देख अपनी बात राखी है. सच्ची पोस्ट!
जवाब देंहटाएंहमज़बान की नयी पोस्ट http://hamzabaan.blogspot.com/2011/07/blog-post_09.html में आदमखोर सामंत! की कथा ज़रूर पढ़ें