रोज़ क्यूँ मरते हो ..
किसी डर से
आहत होकर
तुम रोज़
क्यूँ मरते हो
रोज़ क्यूँ यूँ ही
दर्द से सिसकते हो
अपने अन्दर
जो डर छुपा है
उठो और उसे
बस एक बार
हिम्मत दिखाकर
मार डालो यारों
समझ गए ना
रोज़ मरने से
बहतर डर को
डर से संघर्ष कर
उसे मार गिराना
अच्छा होता है .
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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