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14 मई, 2011

भूवैज्ञानिक इन्द्रनील भट्टाचार्जी जज्बात जिंदगी और में को जन्म दिन पर बधाई

 इन्द्रनील भट्टाचार्जी .... सैल
मैं पेशे से भू-वैज्ञानिक हूँ ! प्रकृति के बहुत करीब रहकर काम करते करते प्राकृतिक सौंदर्य से मुझे एक लगाव सा हो गया है ! इंसानी फितरत, ज़माने के रंग ढंग, भावनाएं और ज़िन्दगी के खट्टे मीठे अनुभवों को मैं शब्दों में ढालने की कोशिश करते रहता हूँ ! कभी ख़ुशी का इज़हार करता हूँ, तो कभी ग़म का इकरार करता हूँ !........................                        


एक साल - एक सपना - जन्मदिन स्पेशल !

देखते देखते एक और साल गुज़र गया ... व्यस्तताओं से घिरा हुआ, दुखों में डोलता, खुशियों में झूमता, कुछ उदास, कुछ मुस्कुराता, जीवन का एक और टुकड़ा ... और मैंने कहा था पिछले साल के पोस्ट में की शिवम जी के पोस्ट से मुझे यह  पता  चला था की आज के दिन अमर शहीद सुखदेव का भी जन्मदिन है ... तो आज आप सभी  दोस्तों से एक अनुरोध है ... छोटा सा है ... please please please मना मत करियेगा ....
आइये आज हम सब, जब भी हमें समय मिले, केवल एक मिनिट के लिए अपनी आँखें बंद करके भारत माता के उस महान सपूत को याद करलें ... यह हमारी तरफ से भारत माता के लिए स्वाधीनता संग्राम में जान देने वाले उन हजारों वीरों को सम्मान प्रदान करना होगा ...


कल रात एक सपना देखा ... आज आप सबके लिए उसी सपने को मैं अपनी शब्दों में ढालने की कोशिश किया है ...

कल रात देखा 
एक सपना अजीब सा !
दूर किसी गांव में,
हम और तुम,
दोनों मिलके बना रहे थे 
अपने लिए एक छोटा सा झोपड़ा ।
आसपास के जंगल से 
चुनके लाते
सुखी लकड़ी,
और पत्ते,
फिर उनसे बनाते हैं 
दीवार और छत  ...
फिर मिट्टी खोदके,
उसमें पानी मिलाकर,
गीली मिट्टी लगाते हैं 
दीवार पर और
झोपड़े के अंदर 
फर्श लेपते हैं ।
फिर मिट्टी के दीवारों को 
रंगते हैं अपने हाथों से,
सफ़ेद, पीली मिट्टी से 
अपने मन से बनाते हैं 
कुछ आड़ा तिरछा चित्र ।

कितना सुन्दर है वो छोटा सा,
मगर प्यारा सा,
अपना वो "घर" ।

मगर तभी मुझे दिखता है
दूर से आता भयानक तूफ़ान ।
तेज हवा का बवंडर ।
धुल का आसमान छूता अन्धकार ।
सबकुछ उड़ा ले जाने वाला 
प्रचण्ड  झंजावात ।

हम डर जाते हैं ।
ऐसा लगता है कि
इतने प्यार से संजोया हुआ 
ये घर बिखर जायेगा ।
ये जो सबकुछ है 
जाना पहचाना सा,
ये जो हम तिल तिल करके 
प्यार और मेहनत से बनाये हैं,
सब कुछ उड़ा के ले जायेगी 
ये समय की हवा ।

कितना डर, कितना डर !

लेकिन फिर हम दोनों
एक दुसरे को 
पकड़ते हैं अपनी बाहों में ।
कहते हैं एक दुसरे के कान में,
कि अगर बहा ले गई सबकुछ हवा,
फिर भी न हारेंगे हम,
फिर से बनायेंगे 
एक नया घर ।

और जानते हो 
फिर मैंने क्या देखा ?

मैंने देखा कि वो भयानक तूफ़ान 
थम गया अपने आप !
जैसे हारके हमारे प्यार के सामने
चला गया वापस ।

बस ऐसा ही कुछ सपना था 
शायद,
ठीक से याद नहीं है ...

क्या तुमने भी कोई देखा था 
सपना ?   
जी हाँ दोस्तों एक भू वैज्ञानिक जो कभी ख़ुशी का इज़हार करते हैं तो कभी जिंदगी में गमों का इकरार करते हैं ......वोह कहते हैं दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी ना था ..जज्बात के सहारों में जिंदगी कर ली तमाम ...एक भू वैज्ञानिक का कुछ इस तरह के रिश्तो और जिंदगी के बारे में इज़हार बहुत खुबसूरत लगता है उनके जज्बात ,जिंदगी और में ब्लॉग पर वोह लिखते हैं के अपनी कुछ कविताएँ कुछ गज़ल कुछ बात रख रहा हूँ और रखते भी है इसीलियें

  

दोस्तों आज जज्बात जिंदगी और में के लेखक ब्लोगर  इंद्र नील भट्टाचार्जी जो एक भूवैज्ञानिक है वोह लिखते हैं दुनिया दारी से ज्यादा राबता कभी ना था ....जज्बात के सहारे जिंदगी कर ली तमाम ...वोह अपने ब्लॉग पर अल्फाजों की शक्ल में कभी खुशियों का इज़हार करते हैं तो कभी जिंदगी में गमों का इकरार भी करते हैं ...वोह कहते हैं अपनी कुछ कविताये ,,लुछ गजलें कुछ बात रख रहा हूँ ..अपनी जिनगी के कुछ अहसासात रख रहा हूँ ऐसे भाई भूवैज्ञानिक इन्द्रनील भट्टाचार्जी जज्बात जिंदगी और में को जन्म दिन पर बधाई .........   अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

  1. इन्द्रनील उन ब्लोगर्स में से एक हैं जिन्हें पढना एक सुखद अनुभव होता है ! उन्हें शुभकामनायें ! आपका धन्यवाद कि आपने उन्हें याद किया !

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  2. यह प्रस्तुति अच्छा लगी |बधाई |
    आशा

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